Thursday, September 11, 2008

क्या दुनिया है - पैसा ही सब कुछ है

तुलसी सिंह बिष्ट
सोचा था जय बच्चन ने जो कहा था कि मैं हिन्दी हूं और हिन्दी भाषा बोलूंगी तो इसमें बुरा क्या कहा परन्तु राज ठाकरे को क्या मुसीबत हो गई पता नहीं। उसके बाद अमिताभ बच्चन ने जो माफी मांगी उसे देखकर मुझे काफी हैरानगी हुई। हिन्दी राष्ट्र भाषा है और इसे बोलने पर किसी को माफी नहीं मांगनी चाहिए। लगता है दुनिया में पैसा ही महान है बाकी सब भाड़ में जाए। अगर शिव सेना के राज ठाकरे अमिताभ की फिल्म को नहीं चलने देते तो भी अमिताभ भूखा नहीं मारता। मैं संघी हूं। परन्तु हिन्दी भाषा को हीन भावना के तौर पर जो राज ठाकरे ने देखा वो गलत था। फिर अमिताभ को माफी मांगना दोनों ने ही देश की राष्ट्रभाषा के साथ खिलवाड़ किया है। आज से मेरे लिए गांधी जी के विचार मरे और तमाम हिन्दी लेखक मर गए अगर उन्होंने एक अभियान अमिताभ बच्चन और राज ठाकरे के विरुद्ध नहीं चलाया।
मैं राज ठाकरे की तरफ से नहीं बोल रहा हूं मैं केवल इतना आपको बताना चाहता हूं जैसे अत्याचार करने वाले के साथ-साथ अत्याचार सहन करने वाला भी दोषी होता है वैसे ही राष्ट्र भाषा बोलने के बाद माफी मांगा भी एक तरफ से देश की राष्ट्र भाषा का ही अपमान है। इसलिए आपसे विनती है कि भविष्य में राज ठाकरे और अमिताभ बच्चन से संबंधित सभी चीजों का बहिष्कार करें। दोनों ने ही किसी न किसी रूप से राष्ट्रभाषा का अपमान ही किया है। इसलिए ये लोग देश भक्त हो ही नहीं सकते।

8 comments:

रंजन राजन said...

चिट्ठाजगत में आपका स्वागत हैं। अच्छा लिखते हैं। सक्रियता बनाए रखें। शुभकामनाएं।
वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें तो लोगों को टिप्पणी डालने में सुविधा होगी।

शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है. स्वागत है आपका

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

सहमत हूँ आपसे...। शुभकामनाएं।

شہروز said...

बहुत खूब!आपके तख्लीकी-सर्जनात्मक जज्बे को सलाम.
आप अच्छा काम कर रहे हैं.
फ़ुर्सत मिले तो हमारे भी दिन-रात देख लें...लिंक है:
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/

Richa Joshi said...

आपकी बात सही है कि अत्याचार करने वाले से अत्याचार सहने वाला अधिक दोषी होता है। जया ने माफी मांग ली, यह हमारे लिए शर्म की बात है क्योंकि राज ठाकरे का आतंक हमारे हुक्मरान कुचल नहीं पाए। राज ठाकरे को इस मुद्दे के सहारे जो फसल उगानी थी वह उन्होंने उगा ली। अगर जया मामले को खत्म नहीं करतीं तो इसका राज ठाकरे को आैर अधिक फायदा मिलता। एक प्रश्न यह भी है कि हम जया को शहादत के लिए क्यों आग्रह करें। वह अपना आर्थिक नुकसान भी क्यों करें। अपनी खुशहाली को क्यों दाव पर लगाएं। आज अगर अमिताभ के पास समृद्धि है तो वह अपनी मेहनत, काबिलियत आैर किस्मत की है। यदि हम एक भूखे या जरूरतमंद की मदद करते हैं तो हमें यह कहने का अधिकार है कि अमिताभ अगर एेसा नहीं करते तो भूखे नहीं मर जाते। इस देश में तमाम अमिताभ भूखे मरते हैं लेकिन कोई उन्हें पूछने नहीं जाता।

राजेंद्र माहेश्वरी said...

जिस दिन सच्चाई को देखकर भी हम बोलना नही चाहते उसी दिन हमारी मोंत की शुरुआत हो जाती है |

सहमत हूँ आपसे...। शुभकामनाएं।

Kavita Vachaknavee said...

नए चिट्ठे का स्वागत है. निरंतरता बनाए रखें.खूब लिखें,अच्छा लिखें.

प्रदीप मानोरिया said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है बहुत सटीक लिखते हैं समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें